aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "gajar"
शब की तन्हाई में उभरी हुई आवाज़-ए-जरससुब्ह-गाई का गजर हो ये ज़रूरी तो नहीं
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न थावो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देतेसवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर सेइलाही ये घटा दो दिन तो बरसे
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानीझूम के आई घटा टूट के बरसा पानी
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिबअभी हयात का माहौल ख़ुश-गवार नहीं
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेनाबहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ मेंमंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही
मुझ को मालूम है महबूब-परस्ती का अज़ाबदेर से चाँद निकलना भी ग़लत लगता है
कभी लफ़्ज़ों से ग़द्दारी न करनाग़ज़ल पढ़ना अदाकारी न करना
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारीकभी वो न समझे कभी हम न समझे
है ग़लत गर गुमान में कुछ हैतुझ सिवा भी जहान में कुछ है
तिरी क़ीमत घटाई जा रही हैमुझे फ़ुर्क़त सिखाई जा रही है
क़रीब आओ तो शायद समझ में आ जाएकि फ़ासले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं
जहाँ हो प्यार ग़लत-फ़हमियाँ भी होती हैंसो बात बात पे यूँ दिल बुरा नहीं करते
सीरत न हो तो आरिज़-ओ-रुख़्सार सब ग़लतख़ुशबू उड़ी तो फूल फ़क़त रंग रह गया
रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैंहम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहींमसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं
हज़ार मर्तबा बेहतर है बादशाही सेअगर नसीब तिरे कूचे की गदाई हो
शौक़िया कोई नहीं होता ग़लतइस में कुछ तेरी रज़ा मौजूद है
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