aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "gandh"
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ीउस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो
बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती हैहाए क्या चीज़ ग़रीब-उल-वतनी होती है
दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैंइस कहानी में बहर हाल कई बातें हैं
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुतदिल की घनी बस्ती में यारो आन बसे हैं चोर बहुत
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शामजब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिएइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
हम तिरे शौक़ में यूँ ख़ुद को गँवा बैठे हैंजैसे बच्चे किसी त्यौहार में गुम हो जाएँ
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गईअब मेरा इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ
गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई हैरंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गईज़िंदगी मजबूरियों का नाम हो कर रह गई
ये महल ये माल ओ दौलत सब यहीं रह जाएँगेहाथ आएगी फ़क़त दो गज़ ज़मीं मरने के बाद
वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझेमैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई
खोला दरवाज़ा समझ कर मुझ को ग़ैरखा गए धोका मिरी आवाज़ से
न होगा राएगाँ ख़ून-ए-शहीदान-ए-वतन हरगिज़यही सुर्ख़ी बनेगी एक दिन उनवान-आज़ादी
ये ज़िंदगी के कड़े कोस याद आते हैंतिरी निगाह-ए-करम का घना घना साया
हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहींहमारे ख़ून में गँगा भी चनाब भी है
ये किरदारों के गंदे आइने अपने ही घर रखिएयहाँ पर कौन कितना पारसा है हम समझते हैं
'दाग़' के शेर जवानी में भले लगते हैं'मीर' की कोई ग़ज़ल गाओ कि कुछ चैन पड़े
मुझ से ज़ियादा कौन तमाशा देख सकेगागाँधी-जी के तीनों बंदर मेरे अंदर
हुस्न बना जब बहती गंगाइश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव
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