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शेर
चाहत के बदले में हम बेच दें अपनी मर्ज़ी तक
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो
अंदलीब शादानी
शेर
डराएगी हमें क्या हिज्र की अँधेरी रात
कि शम्अ' बैठे हैं पहले ही हम बुझाए हुए
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
शेर
जो मुँह से कहते हैं कुछ और करते हैं कुछ और
वही ज़माना में कुछ इख़्तियार रखते हैं
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
शेर
तिरा आना मिरे घर हो गया घर ग़ैर के जाना
मुझे मालूम थी इस ख़्वाब की ता'बीर पहले से