aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "gazal-e-'miir'"
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आनादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
दूर बैठा ग़ुबार-ए-'मीर' उस सेइश्क़ बिन ये अदब नहीं आता
बस ऐ 'मीर' मिज़्गाँ से पोंछ आँसुओं कोतू कब तक ये मोती पिरोता रहेगा
हम ने जाना था लिखेगा तू कोई हर्फ़ ऐ 'मीर'पर तिरा नामा तो इक शौक़ का दफ़्तर निकला
अहवाल-'मीर' क्यूँकर आख़िर हो एक शब मेंइक उम्र हम ये क़िस्सा तुम से कहा करेंगे
फिरते हैं 'मीर' ख़्वार कोई पूछता नहींइस आशिक़ी में इज़्ज़त-ए-सादात भी गई
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तोक़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया
सख़्त काफ़िर था जिन ने पहले 'मीर'मज़हब-ए-इश्क़ इख़्तियार किया
उम्र गुज़री दवाएँ करते 'मीर'दर्द-ए-दिल का हुआ न चारा हनूज़
मुझ को शायर न कहो 'मीर' कि साहब मैं नेदर्द ओ ग़म कितने किए जम्अ तो दीवान किया
जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तिरा 'मीर' ज़ि-बसउन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते
शिकवा-ए-आबला अभी से 'मीर'है पियारे हनूज़ दिल्ली दूर
क्या जानूँ चश्म-ए-तर से उधर दिल को क्या हुआकिस को ख़बर है 'मीर' समुंदर के पार की
ज़ेर-ए-शमशीर-ए-सितम 'मीर' तड़पना कैसासर भी तस्लीम-ए-मोहब्बत में हिलाया न गया
कुछ नहीं बहर-ए-जहाँ की मौज पर मत भूल 'मीर'दूर से दरिया नज़र आता है लेकिन है सराब
मानिंद-ए-शम्मा-मजलिस शब अश्क-बार पायाअल-क़िस्सा 'मीर' को हम बे-इख़्तियार पाया
आहों के शोले जिस जा उठते थे 'मीर' से शबवाँ जा के सुब्ह देखा मुश्त-ए-ग़ुबार पाया
ग़ज़ल ऐ 'मुसहफ़ी' ये 'मीर' की हैतुम्हारी मीरज़ाई हो चुकी बस
'ग़ालिब' ओ 'मीर' 'मुसहफ़ी'हम भी 'फ़िराक़' कम नहीं
दयार-ए-मीर-तक़ी-'मीर' को सलाम करोयहाँ ख़ुदा-ए-सुख़न गाह गाह बैठते हैं
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