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शेर
इस बज़्म में पूछे न कोई मुझ से कि क्या हूँ
जो शीशा गिरे संग पे मैं उस की सदा हूँ
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
शेर
जो दिन को निकलो तो ख़ुर्शीद गिर्द-ए-सर घूमे
चलो जो शब को तो क़दमों पे माहताब गिरे
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
शेर
बराए-सैर मुझ सा रिंद मय-ख़ाने में गर आए
गिरे साग़र लुंढे शीशा हँसे साक़ी बहे दरिया