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शेर
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में
भारतेंदु हरिश्चंद्र
शेर
वो शख़्स अमर है, जो पीवेगा दो चाँदों के नूर
उस की आँखें सदा गुलाबी जो देखे इक लाल
अली अकबर नातिक़
शेर
वुज़ू होता है याँ तो शैख़ उसी आब-ए-गुलाबी से
तयम्मुम के लिए तुम ख़ाक जा कर दश्त में फाँको
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बा'द
रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बा'द