aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "gulkhan"
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चलेचले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती हैजीने के लिए इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है
चमन में रखते हैं काँटे भी इक मक़ाम ऐ दोस्तफ़क़त गुलों से ही गुलशन की आबरू तो नहीं
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज देतितलियाँ मंडला रही हैं काँच के गुल-दान पर
आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिएगुलशन न बन सके तो बयाबाँ बनाइए
जहाँ गुलशन वहाँ गुल है जहाँ गुल है वहाँ बू हैजहाँ उल्फ़त वहाँ मैं हूँ जहाँ मैं हूँ वहाँ तू है
बोसे अपने आरिज़-ए-गुलफ़ाम केला मुझे दे दे तिरे किस काम के
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशनजब तक उलझे न काँटों से दामन
दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ नेएक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया
वही गुलशन है लेकिन वक़्त की पर्वाज़ तो देखोकोई ताइर नहीं पिछले बरस के आशियानों में
गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं
रू-ब-रू कर के कभी अपने महकते सुर्ख़ होंटएक दो पल के लिए गुल-दान कर देगा मुझे
जिस ने बुनियाद गुलिस्ताँ की कभी डाली थीउस को गुलशन से गुज़रने नहीं देती दुनिया
वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है
गुलशन-ए-दहर से ख़ुशबू की तरह गुज़रा मैंसब को महकाया मगर अपनी नुमाइश नहीं की
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बरआएगी बुलबुल मिरे घर में मुबारकबाद को
कुछ कुछ मिरी आँखों का तसर्रुफ़ भी है शामिलइतना तो हसीं तू मिरे गुलफ़ाम नहीं है
ये घर मिरा गुलशन है गुलशन का ख़ुदा हाफ़िज़अल्लाह निगहबान नशेमन का ख़ुदा हाफ़िज़
चमन पे ग़ारत-ए-गुल-चीं से जाने क्या गुज़रीक़फ़स से आज सबा बे-क़रार गुज़री है
दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत मेंहर एक गुल से तिरे पैरहन की बू आए
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