aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "gumshuda sheher ki"
जंगल में जो सन्नाटा थाशहर की जानिब आ निकला है
ग़म-गुसारी प्यार हमदर्दी वफ़ाये दुकानें शहर के बाहर लगा
लाख मीठे हों तिरे शहर के चश्मे लेकिनहम तिरे शहर को ख़ुश-आब नहीं कह सकते
घर में जी लगता नहीं और शहर केरास्ते लगते नहीं अपने अज़ीज़
अच्छी रौनक़ है तुम्हारी बज़्म मेंआ गए सब शहर के बर्बाद क्या
ख़ूब थी अब मगर बदल सी गईतेरे इस शहर की ये तन्हाई
गुमनाम एक लाश कफ़न को तरस गईकाग़ज़ तमाम शहर के अख़बार बन गए
कब तीरों से तलवारों से डरता हूँशहर के पीले अख़बारों से डरता हूँ
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना हैकभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिएकहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गईइक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
तमाम शहर को तारीकियों से शिकवा हैमगर चराग़ की बैअत से ख़ौफ़ आता है
दिहात के वजूद को क़स्बा निगल गयाक़स्बे का जिस्म शहर की बुनियाद खा गई
बयाबाँ दूर तक मैं ने सजाया थामगर वो शहर के रस्ते से आया था
बंद पड़े हैं शहर के सारे दरवाज़ेये कैसा आसेब अब घर घर लगता है
ताज़ा हवा ख़रीदने आते हैं गाँव में'शाहिद' शहर के लोग भी कैसे अजीब हैं
शहर को छोड़ के वीरानों में आबाद तो होतुझे तन्हाई की आवाज़ सुनाई देगी
हर कूचे में अरमानों का ख़ून हुआशहर के जितने रस्ते हैं सब ख़ूनीं हैं
सोच दिन रात यही है तिरे दीवाने कीजाइए शहर को पर छोड़िए सहरा क्यूँकर
समुंदर का किनारा छोड़ना आसाँ नहीं होताकराची शहर की शामें सुहानी छोड़ आई हूँ
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