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शेर
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
पूछा है हाल-ए-ज़ार तो सुन लो ख़ता-मुआफ़
कुछ बात मेरे होंटों में है कुछ ज़बान में
लाला माधव राम जौहर
शेर
ज़ात-ए-ख़ाकी की तहों में ख़ुफ़्ता हैं अनवा'-ए-ख़ाक
रंगहा-ए-तह-ब-तह का पेच-ओ-ख़म कुछ और है
अख़लाक़ अहमद आहन
शेर
सुराही-ए-मय-ए-नाब-ओ-सफीना-हा-ए-ग़ज़ल
ये हर्फ़-ए-हुस्न-ए-मुक़द्दर लिखा है किस के लिए