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शेर
ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है
हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है
लाला माधव राम जौहर
शेर
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
मुसलमानी में ताक़त ख़ून ही बहने से आती है
अकबर इलाहाबादी
शेर
हम ने हँस हँस के तिरी बज़्म में ऐ पैकर-ए-नाज़
कितनी आहों को छुपाया है तुझे क्या मालूम