aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "haalaat-e-daruu.n"
हालात-ए-ख़ूँ-आशाम से ग़ाफ़िल नहीं लेकिनऐ ज़ुल्म तिरे हाथ पे बैअ'त नहीं करते
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंगइसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ
अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैंसोज़-ए-दरूँ किसी पे नहीं खोलता हूँ मैं
पैवस्ता गर्द-ए-दश्त रही गर तह-ए-दरूँआया है जिस्म-ए-क़ैस अगर पैरहन के बीच
कोई ऐसा तो तिरे ब'अद नहीं रहना थाहालत-ए-हिज्र को उफ़्ताद नहीं रहना था
चश्म-ए-जहाँ से हालत-ए-असली छुपी नहींअख़बार में जो चाहिए वो छाप दीजिए
हालत-ए-हाल से बेगाना बना रक्खा हैख़ुद को माज़ी का निहाँ-ख़ाना बना रक्खा है
आप उठ रहे हैं क्यूँ मिरे आज़ार देख करदिल डूबते हैं हालत-ए-बीमार देख कर
जान-ए-जाँ मायूस मत हो हालत-ए-बाज़ार सेशायद अगले साल तक दीवाना-पन मिलने लगे
एक आलिम है जो सज्दों में गिला करता हैएक दरवेश है जो हालात-ए-नमनाक में ख़ुश
अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
किस से शिकवा करें वीरानी-ए-हस्ती का 'हयात'हम ने ख़ुद अपनी तमन्नाओं को जीने न दिया
हाए ये तवील ओ सर्द रातेंऔर एक हयात-ए-मुख़्तसर में
कब ख़बर थी कि हयात-ए-'अशरफ़'तेरी ज़ुल्फ़ों में उलझ जाएगी
पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदाँ थाहर नग़्मा-ए-कृष्ण बाँसुरी का
न रहा कोई तार दामन मेंअब नहीं हाजत-ए-रफ़ू मुझ को
ख़िज़र भी आप पर आशिक़ हुए हैंक़ज़ा आई हयात-ए-जाविदाँ की
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चलेअपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
इक उदासी थी रात थी हम थेऔर फिर हाजत-ए-ख़ुशी न रही
बहसें छिड़ी हुई हैं हयात ओ ममात कीसौ बात बन गई है 'फ़िराक़' एक बात की
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