aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "had-e-jugraafiya"
मकान-ए-ज़र लब-ए-गोया हद-ए-सिपेह्र-ओ-ज़मींदिखाई देता है सब कुछ यहाँ ख़ुदा के सिवा
अक्सर हुआ है ये कि ख़ुद अपनी तलाश मेंआगे निकल गए हैं हद-ए-मा-सिवा से भी
शम्स-ओ-क़मर से और कभी कहकशाँ से हमगुज़रे हैं लाख बार हद-ए-ला-मकाँ से हम
हमें हद्द-ए-अदब ने मार डालाकि दुश्मन उम्र में हम से बड़ा है
मैं देखता हूँ आप को हद्द-ए-निगाह तकलेकिन मिरी निगाह का क्या ए'तिबार है
नज़र से हद्द-ए-नज़र तक तमाम तारीकीये एहतिमाम है इक वा'दा-ए-सहर के लिए
तीरगी ही तीरगी हद्द-ए-नज़र तक तीरगीकाश मैं ख़ुद ही सुलग उठ्ठूँ अँधेरी रात में
है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँआँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार हैहद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है
हद्द-ए-नज़र तक एक दरीचे से आज फिरमैं जा रहा था और कोई देखता रहा
हद-ए-निगाह देखिए बनने को ग़म-गुसारउस को भी चुप कराइए जो रो नहीं रहा
नहीं है कोई भी हतमी यहाँ हद-ए-मालूमहर एक इंतिहा इक और इंतिहा तक है
हद-ए-इम्काँ से परे तक मैं तुझे चाहूँगीतू मुझे अपने मयस्सर की हदों में मिलना
सब्र हिज्राँ में करे 'कैफ़ी'-ए-महज़ूँ कब तकआख़िर ऐ दोस्त कोई हद्द-ए-शकेबाई है
हद-ए-तकमील को पहुँची तिरी रानाई-ए-हुस्नजो कसर थी वो मिटा दी तिरी अंगड़ाई ने
ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बनामुझ से मिलना है तो मिल हद्द-ए-अदब से आगे
हद-ए-इमकान से आगे मैं जाना चाहता हूँ परअभी ईमान आधा है अभी लग़्ज़िश अधूरी है
अगर वो आज रात हद्द-ए-इल्तिफ़ात तोड़ देकभी फिर उस से प्यार का ख़याल भी न आएगा
देखा क़द-ए-गुनाह पे जब इस को मुल्तफ़ितबढ़ कर हद-ए-निगाह लगी उस को ढाँपने
तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ोता-हद्द-ए-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है
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