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शेर
हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर
अपने रहने का मकाँ दे डालते मज़दूर को
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
शेर
ऐ ज़ाहिदो बातिल से क़सम खाओ जो पहले
तो तुम से कहें हम हक़ ओ बातिल की हक़ीक़त
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
उसी दुनिया के कुछ नक़्श-ओ-निगार अशआ'र हैं मेरे
जो पैदा हो रही है हक़्क़-ओ-बातिल के तसादुम से
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
देख तू यार-ए-बादा-कश मैं ने भी काम क्या किया
दे के कबाब-ए-दिल तुझे हक़्क़-ए-नमक अदा किया
शाह नसीर
शेर
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
शेर
इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है
हुस्न ख़ुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ
मिरी क़िस्मत है बार-ए-हुक्मरानी पुश्त पर रखना