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शेर
नहीं है घर कोई ऐसा जहाँ उस को न देखा हो
कनहय्या से नहीं कुछ कम सनम मेरा वो हरजाई
मोहम्मद रफ़ी सौदा
शेर
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
फिर भी ये ऐब है इक तुम में कि हरजाई हो
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
इतना बतला मुझे हरजाई हूँ मैं यार कि तू
मैं हर इक शख़्स से रखता हूँ सरोकार कि तू
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
बरसों ढूँडा किए हम दैर-ओ-हरम में लेकिन
कहीं पाया न पता उस बुत-ए-हरजाई का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
क्या है हरजाई हसीनान-ए-जहाँ सारी हैं
ये वो अख़्तर हैं कि साबित नहीं सय्यारी हैं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
शेर
है कभू दिल में कभू जी में कभू आँखों के बीच
कौन कहता है उसे यारो कि हरजाई नहीं