aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "hasb-e-zaruurat"
ज़ीस्त और मौत का आख़िर ये फ़साना क्या हैउम्र क्यूँ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी जा सकती
दिल के औराक़ में महकी हुई कलियों की तरहएक इक याद तिरी हस्ब-ए-ज़रूरत रख ली
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिलाकिसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
हाल यूँ हस्ब-ए-रिवायत पूछने से पेशतरदिल के टुकड़ों की खनक फीकी हँसी में ढूँढिए
ये कह दिया है मिरे आँसुओं ने तंग आ करहमें ब-वक़्त-ए-ज़रूरत निकालिए साहब
मिरी तलब में तकल्लुफ़ भी इंकिसार भी थावो नुक्ता-संज था सब मेरे हस्ब-ए-हाल दिया
आतिश का शेर पढ़ता हूँ अक्सर ब-हस्ब-ए-हालदिल सैद है वो बहर-ए-सुख़न के नहंग का
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देखहै देखने की चीज़ इसे बार बार देख
किनारा कर न ऐ दुनिया मिरी हस्त-ए-ज़बूनी सेकोई दिन में मिरा रौशन सितारा होने वाला है
जब किसी सूरत नहीं है मुझ को एहसास-ए-वजूदफिर मिरे किस काम का है ये जहान-ए-हस्त-ओ-बूद
हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद हैआलम तमाम दाम-ए-रुसूम-ओ-क़़ुयूद है
चाहिए एक मुलाक़ात महीने में ज़रूरताज़गी हल्क़ा-ए-अहबाब में आ जाती है
ज़रूरी तो नहीं इक फ़स्ल-ए-गुल होजुनूँ के और भी मौसम बहुत हैं
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती हैउन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं
फ़िक्र-ए-तज्दीद-ए-हिज्र है वर्नाकब मुझे वस्ल की ज़रूरत है
जौर-ए-अफ़्लाक की शिरकत की ज़रूरत क्या हैआप काफ़ी हैं ज़माने को सताने के लिए
मैं उसे समझूँ न समझूँ दिल को होता है ज़रूरलाला ओ गुल पर गुमाँ इक अजनबी तहरीर का
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही सेहर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है
बात सुनाए न लगी दिल की बुझाए न कली दिल की खिलाए न ग़म-ओ-रंज घटाए न रह-ओ-रस्मबढ़ाए जो कहो कुछ तो ख़फ़ा हो कहे शिकवे की ज़रूरत जो यही है तो न चाहो जो न
तू अगर नाज़ाँ है अपने हुस्न पर माह-ए-मुबींदिल भी वो ज़र्रा है जिस की रौशनी कुछ कम नहीं
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