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शेर
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
दरिया-ए-मोहब्बत कहता है आ कुछ भी नहीं पायाब हैं हम
शाद अज़ीमाबादी
शेर
हज़रत-ए-इश्क़ ने दोनों को किया ख़ाना-ख़राब
बरहमन बुत-कदा और शैख़ हरम भूल गए
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
क्या हँसी आती है मुझ को हज़रत-ए-इंसान पर
फ़े'ल-ए-बद ख़ुद ही करें ला'नत करें शैतान पर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
जमे क्या पाँव मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़नाअ'त का
जिगर में चुटकियाँ लेता है नाख़ुन दस्त-ए-हाजत का
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
रख दिलेराना क़दम ता तुझ को हो इमदाद-ए-दाद
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
शेर
हुई पीरी में उस घर की सी हालत ख़ाना-ए-तन की
दर-ओ-दीवार गिर कर जिस मकाँ का उठ नहीं सकता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
सौंप कर ख़ाना-ए-दिल ग़म को किधर जाते हो
फिर न पाओगे अगर उस ने ये घर छोड़ दिया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
शेर
हम सरगुज़िश्त क्या कहें अपनी कि मिस्ल-ए-ख़ार
पामाल हो गए तिरे दामन से छूट कर