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शेर
कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ
कोई जवाज़ तो हो लुत्फ़-ए-बे-सबब के लिए
सय्यद आबिद अली आबिद
शेर
मोहब्बत ख़ुद मोहब्बत का सिला है 'आरफ़ी' लेकिन
कोई आसान है क्या बे-नियाज़-ए-मुद्दआ होना
अब्दुल हई आरफ़ी
शेर
अजीब कश्मकश है कैसे हर्फ़-ए-मुद्दआ कहूँ
वो पूछते हैं हाल-ए-दिल मैं सोचता हूँ क्या कहूँ
फ़िगार उन्नावी
शेर
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
जिसे तुम ने किया ख़ामोश उस से क्या सदा निकले