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शेर
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
ये हज़रत देखने में सीधे-सादे भोले-भाले हैं
अल्लामा इक़बाल
शेर
क्या हँसी आती है मुझ को हज़रत-ए-इंसान पर
फ़े'ल-ए-बद ख़ुद ही करें ला'नत करें शैतान पर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
हम न कहते थे कि हज़रत पारसा कहने को हैं
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
तुम्हारे वाज़ में तासीर तो है हज़रत-ए-वाइज़
असर लेकिन निगाह-ए-नाज़ का भी कम नहीं होता
अकबर इलाहाबादी
शेर
हमीं हैं मौजिब-ए-बाब-ए-फ़साहत हज़रत-ए-'शाइर'
ज़माना सीखता है हम से हम वो दिल्ली वाले हैं
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
शेर
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझाएँगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
आज हज़रत जा के मस्जिद में मुसलमाँ हो गए