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शेर
अमीर ख़ुसरो
शेर
इश्क़ फिर इश्क़ है जिस रूप में जिस भेस में हो
इशरत-ए-वस्ल बने या ग़म-ए-हिज्राँ हो जाए
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
अमीर ख़ुसरो
शेर
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
जीना विसाल में भी तो हिज्राँ से कम न था
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ
अब वो अगली सी दराज़ी शब-ए-हिज्राँ में नहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
शेर
वस्ल-ओ-हिज्राँ दो जो मंज़िल हैं ये राह-ए-इश्क़ में
दिल ग़रीब उन में ख़ुदा जाने कहाँ मारा गया
मीर तक़ी मीर
शेर
ये वो मौसम है जिस में कोई पत्ता भी नहीं हिलता
दिल-ए-तन्हा उठाता है सऊबत शाम-ए-हिज्राँ की
अहमद मुश्ताक़
शेर
वस्ल के दिन शब-ए-हिज्राँ की हक़ीक़त मत पूछ
भूल जानी है मुझे सुब्ह कूँ फिर शाम की बात
सिराज औरंगाबादी
शेर
आप के दुश्मन रहें वक़्फ़-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिश
आप क्यूँ ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिज्राँ कीजिए
जिगर मुरादाबादी
शेर
कुछ हँसी खेल सँभलना ग़म-ए-हिज्राँ में नहीं
चाक-ए-दिल में है मिरे जो कि गरेबाँ में नहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
शेर
हाथ रक्खे रहता हूँ दिल पर बरसों गुज़रे हिज्राँ में
एक दिन उन ने गले से मिल कर हाथ में मेरा दिल न लिया
मीर तक़ी मीर
शेर
प्यासा मत जला साक़ी मुझे गर्मी सीं हिज्राँ की
शिताबी ला शराब-ए-ख़ाम हम ने दिल को भूना है
अब्दुल वहाब यकरू
शेर
साहिल पर आ के लगती है टक्कर सफ़ीने को
हिज्राँ से वस्ल में है सिवा दिल की एहतियात