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शेर
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
मुनव्वर राना
शेर
सगी बहनों का जो रिश्ता है उर्दू और हिन्दी में
कहीं दुनिया की दो ज़िंदा ज़बानों में नहीं मिलता
मुनव्वर राना
शेर
वो हिन्दी नौजवाँ यानी अलम-बरदार-ए-आज़ादी
वतन की पासबाँ वो तेग़-ए-जौहर-दार-ए-आज़ादी
मख़दूम मुहिउद्दीन
शेर
किसी दिन तुम ने रक्खा था हिनाई हाथ सीने पर
ख़ुदा शाहिद है ठंडक आज तक हम दिल में पाते हैं
जलील मानिकपूरी
शेर
वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने
सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा
जौन एलिया
शेर
खिल उठे गुल या खिले दस्त-ए-हिनाई तेरे
हर तरफ़ तू है तो फिर तेरा पता किस से करें
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
शेर
चूम कर आया है ये दस्त-ए-हिनाई आप का
क्यूँ न रक्खूँ मैं कलेजे से लगा कर तीर को