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शेर
फ़िक्र-ए-मंज़िल है न होश-ए-जादा-ए-मंज़िल मुझे
जा रहा हूँ जिस तरफ़ ले जा रहा है दिल मुझे
जिगर मुरादाबादी
शेर
जादा-ए-राह-ए-मोहब्बत की दराज़ी मत पूछ
मंज़िल-ए-शौक़ का हर ज़र्रा बयाबाँ निकला
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
शेर
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
ख़ुश्क-ओ-तर सारे जहाँ का लब-ब-लब साहिल में है
आरज़ू लखनवी
शेर
था किसी गुम-कर्दा-ए-मंज़िल का नक़्श-ए-बे-सबात
जिस को मीर-ए-कारवाँ का नक़्श-ए-पा समझा था में