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शेर
न आई बात तक भी मुँह पे रोब-ए-हुस्न-ए-जानाँ से
हज़ारों सोच कर मज़मून हम दरबार में आए
मर्दान अली खां राना
शेर
आँख चुरा रहा हूँ मैं अपने ही शौक़-ए-दीद से
जल्वा-ए-हुस्न-ए-बे-पनाह तू ने ये क्या दिखा दिया
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ढला है हुस्न लेकिन रंग है रुख़्सार-ए-जानाँ पर
अभी बाक़ी है कुछ कुछ धूप दीवार-ए-गुलिस्ताँ पर
अज्ञात
शेर
जल्वा-ए-यार देख कर तूर पे ग़श हुए कलीम
अक़्ल-ओ-ख़िरद का काम क्या महफ़िल-ए-हुस्न-ओ-नाज़ में
अनवर सहारनपुरी
शेर
वो आँख क्या जो आरिज़ ओ रुख़ पर ठहर न जाए
वो जल्वा क्या जो दीदा ओ दिल में उतर न जाए
फ़ना निज़ामी कानपुरी
शेर
मोहम्मद सईद रज़्मी
शेर
रंग-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता हूँ आब-ए-रुख़-ए-चमन हूँ मैं
शम-ए-हरम चराग़-ए-दैर क़श्क़ा-ए-बरहमन हूँ मैं
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
दिल अर्श-गाह-ए-हुस्न है दिल जल्वा-गाह-ए-नाज़
ये आप ही का घर है हमारी गुज़र कहाँ