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शेर
मिरी 'आशिक़ी सही बे-असर तिरी दिलबरी ने भी क्या किया
वही मैं रहा वही बे-दिली वही रंग-ए-लैल-ओ-नहार है
ए. डी. अज़हर
शेर
शाह नसीर
शेर
लैला ओ मजनूँ की लाखों गरचे तस्वीरें खिंचीं
मिल गई सब ख़ाक में जिस वक़्त ज़ंजीरें खिंचीं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
चश्म-ए-लैला का जो आलम है उन्हों की चश्म में
देखे है दो दो पहर मजनूँ ग़ज़ालाँ की तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
तंग आ गए हैं गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से हम
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
शेर
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
मिरा पा-ए-नज़र पड़ता है ज़ंजीर-ए-गुलिस्ताँ पर
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
मुँह नज़र आता नहीं आईना-ए-तस्वीर में