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शेर
इज़्ज़त-ए-नफ़्स का सौदा कर के ख़ून के घूँट पिए हर दम
भीगी बिल्ली बन कर हम ने अपनी उम्र बिताई थी
हम्माद हसन
शेर
रुस्वा अगर न करना था आलम में यूँ मुझे
ऐसी निगाह-ए-नाज़ से देखा था क्यूँ मुझे
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
'नुशूर' आलूदा-ए-इस्याँ सही पर कौन बाक़ी है
ये बातें राज़ की हैं क़िब्ला-ए-आलम भी पीते हैं
नुशूर वाहिदी
शेर
ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो
यही जीने का सामाँ हैं तो फिर इन में कमी क्यूँ हो