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शेर
बहुत बर्बाद हैं लेकिन सदा-ए-इंक़लाब आए
वहीं से वो पुकार उठेगा जो ज़र्रा जहाँ होगा
अली सरदार जाफ़री
शेर
ये माना इंक़लाब-ए-ज़िंदगी में लाख ख़तरे हैं
तमन्ना फिर भी है ये ज़िंदगी ज़ेर-ओ-ज़बर होती
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
हादसात-ए-दहर में वाबस्ता-ए-अर्बाब-ए-दर्द
ली जहाँ करवट किसी ने इंक़लाब आ ही गया