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शेर
ज़िंदगी में ऐसी कुछ तुग़्यानीयाँ आती रहीं
बह गईं हैं उम्र भर की नेकियाँ दरियाओं में
फ़ारिग़ बुख़ारी
शेर
उम्र-भर जिस के लिए आँखें रही हैं फ़र्श-ए-राह
वो अजल का क़ासिद-ए-फ़र्ख़न्दा-गाम आ ही गया
रशीद शाहजहाँपुरी
शेर
सर के नीचे ईंट रख कर उम्र भर सोया है तू
आख़िरी बिस्तर भी 'आमिर' तेरा फ़र्श-ए-ख़ाक था
मुहम्मद याक़ूब आमिर
शेर
ग़ज़ल लिख कर तिरी दीवार पर लटका के जब आता
तो सारी रात फिर गिर्या दर-ओ-दीवार करता था