aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "iz.haar"
हर एक रात को महताब देखने के लिएमैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो हैपर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है
तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करतालफ़्ज़ सूझा तो मआ'नी ने बग़ावत कर दी
ये मोहब्बत का फ़साना भी बदल जाएगावक़्त के साथ ज़माना भी बदल जाएगा
ज़बाँ ख़ामोश मगर नज़रों में उजाला देखाउस का इज़हार-ए-मोहब्बत भी निराला देखा
और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशीहम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं
कट गई एहतियात-ए-इश्क़ में उम्रहम से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ
अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसासकितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना
ये और बात कि आँधी हमारे बस में नहींमगर चराग़ जलाना तो इख़्तियार में है
मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करेकब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए
जब तक माथा चूम के रुख़्सत करने वाली ज़िंदा थीदरवाज़े के बाहर तक भी मुँह में लुक़्मा होता था
दफ़्तर से मिल नहीं रही छुट्टी वगर्ना मैंबारिश की एक बूँद न बे-कार जाने दूँ
यूँ चार दिन की बहारों के क़र्ज़ उतारे गएतुम्हारे बअ'द के मौसम फ़क़त गुज़ारे गए
दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजेलफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं
घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुएमैं ख़ुद से रूठ गया हूँ उसे मनाते हुए
दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता थातालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था
वाक़िफ़ हैं ख़ूब आप के तर्ज़-ए-जफ़ा से हमइज़हार-ए-इल्तिफ़ात की ज़हमत न कीजिए
ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिएमगर सितम है कि सब को सुनाना पड़ता है
नींद आएगी भला कैसे उसे शाम के बा'दरोटियाँ भी न मयस्सर हों जिसे काम के बा'द
हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हारतिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है
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