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शेर
इतना गया हूँ दूर मैं ख़ुद से कि दम-ब-दम
करनी पड़े है अपनी भी अब इल्तिजा मुझे
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
मकान सीने का पाता हूँ दम-ब-दम ख़ाली
नज़र बचा के तू ऐ दिल किधर को जाता है
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
शेर
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
दम-ब-दम ज़ीस्त नें मेरी मुझे ज़ुन्नार दिया
आबरू शाह मुबारक
शेर
उश्शाक़ जो तसव्वुर-ए-बर्ज़ख़ के हो गए
आती है दम-ब-दम ये उन्हीं को सदा-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
शेर
साअत-ए-ईसवियाँ है कि मिरा दिल जिस में
ख़ुद-ब-ख़ुद चोट लगी ख़ुद-ब-ख़ुद आवाज़ हुई
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
ख़ूबसूरत हैं आँखें तिरी रात को जागना छोड़ दे
ख़ुद-ब-ख़ुद नींद आ जाएगी तू मुझे सोचना छोड़ दे
हसन काज़मी
शेर
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
ख़ुद-ब-ख़ुद हर ज़ख़्म का अंगूर मीठा हो गया