aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "jalii"
तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसोंसाँचे में हर इक ग़म के चुप-चाप ढली बरसों
चराग़ बन के जली थी मैं जिस की महफ़िल मेंउसे रुला तो गया कम से कम धुआँ मेरा
परवाना गिर्द घूम के जब हो चुका फ़नाअब सारी रात शम्अ लगन में जली तो क्या
शम-ए-शब-ताब एक रात जलीजलने वाले तमाम उम्र जले
रात बस्ती जली ग़रीबों कीसुब्ह अख़बार हो गए रौशन
जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थींखिंची हैं काँटों पे जो पत्तियाँ गुलाब की थीं
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुईइक शम्अ रह गई है सो वो भी ख़मोश है
शायद जली हैं फिर कहीं नज़दीक बस्तियाँगुज़रे हैं कुछ परिंदे इधर से डरे हुए
ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रातमाम रात जली शम्अ अंजुमन के लिए
इस में बच्चों की जली लाशों की तस्वीरें हैंदेखना हाथ से अख़बार न गिरने पाए
मौत आ जाए या वो आ जाएँआज क़िस्सा तमाम हो जाए
'नसीर' उस ज़ुल्फ़ की ये कज-अदाई कोई जाती हैमसल मशहूर है रस्सी जली लेकिन न बल निकला
ज़िंदगी भी मिरे नालों की शनासा निकलीदिल जो टूटा तो मिरे घर में कोई शम्अ जली
देख लेते हैं अंधेरे में भी रस्ता अपनाशम्अ एहसास के मानिंद जली रहती है
किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी किसी के बाल-ओ-पर टूटेजली शाख़ों पे यूँ लटके कबूतर देख आया हूँ
वहम-ओ-गुमाँ ने आस बँधाई तमाम रातआहट ख़िराम-ए-नाज़ की आई तमाम रात
क्यूँ तीरगी से इस क़दर मानूस हूँ 'ज़फ़र'इक शम-ए-राह-गुज़र कि सहर तक जली भी है
हम ने तो उन्हें जामिआ से नक़्द ख़रीदाफिर किस तरह जाली हुईं अस्नाद हमारी
ढूँडते हो क्यूँ जली तहरीर के असबाक़ मेंमैं तो कोहरे की तरह धुँदले निसाबों में रहा
आप आते हैं तो आ जाएँ मगर ये शर्त हैमुझ से बरगश्ता न हो जाएँ मिरी तन्हाइयाँ
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