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शेर
ख़ुदा जाने ये दुनिया जल्वा-गाह-ए-नाज़ है किस की
हज़ारों उठ गए लेकिन वही रौनक़ है मज्लिस की
अज्ञात
शेर
तुम्हारी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में अंधेर ही कब था
ये मूसा दौड़ कर किस को दिखाने शम्अ' तूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
दिल अर्श-गाह-ए-हुस्न है दिल जल्वा-गाह-ए-नाज़
ये आप ही का घर है हमारी गुज़र कहाँ
अबरार शाहजहाँपुरी
शेर
ज़रा पर्दा हटा दो सामने से बिजलियाँ चमकें
मिरा दिल जल्वा-गाह-ए-तूर बन जाए तो अच्छा हो
अली ज़हीर रिज़वी लखनवी
शेर
जिस ने जी भर के तजल्ली को कभी देखा हो
कोई ऐसा भी तिरी जल्वा-गह-ए-नाज़ में है
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
चाँद जैसे ऐ 'क़मर' तारों भरी महफ़िल में है
क़मर जलालवी
शेर
जल्वा-गर था हर जगह का'बा था या बुत-ख़ाना था
घर हज़ारों थे मगर वो एक साहब-ख़ाना था
चंदू लाल बहादुर शादान
शेर
जल्वा-गर दिल में ख़याल-ए-आरिज़-ए-जानाना था
घर की ज़ीनत थी कि ज़ीनत-बख़्श साहब-ख़ाना था
हबीब मूसवी
शेर
दैर में का'बे में मयख़ाने में और मस्जिद में
जल्वा-गर सब में मिरा यार है अल्लाह अल्लाह
वलीउल्लाह मुहिब
शेर
रातों को आँख उठा के ज़रा देख तो सही
क्या शक्लें जल्वा-गर हैं फ़लक के रवाक़ में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
क़यामत था सितम था क़हर था ख़ल्वत में ओ ज़ालिम
वो शरमा कर तिरा मेरी बग़ल में जल्वा-गर होना