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शेर
जनाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क़ में लड़ने से क्या हासिल
मैं अपना रास्ता ले लूँ तुम अपना रास्ता ले लो
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
धूम कर रक्खी थी कल रिंदों ने बज़्म-ए-वा'ज़ में
पगड़ी ग़ाएब थी जनाब-ए-शैख़ की गुल था चराग़