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शेर
पीर-ए-मुग़ाँ के पास वो दारू है जिस से 'ज़ौक़'
नामर्द मर्द मर्द-ए-जवाँ-मर्द हो गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
हमारे ब'अद उस मर्ग-ए-जवाँ को कौन समझेगा
इरादा है कि अपना मर्सिया भी आप ही लिख लें
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
शेर
जहाँ इंसानियत वहशत के हाथों ज़ब्ह होती हो
जहाँ तज़लील है जीना वहाँ बेहतर है मर जाना
गुलज़ार देहलवी
शेर
मैं किस क़तार में हूँ जहाँ मुझ से सैकड़ों
मर मर गए अज़िय्यत-ए-ज़ंजीर खींच कर
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
'आज़ुर्दा' मर के कूचा-ए-जानाँ में रह गया
दी थी दुआ किसी ने कि जन्नत में घर मिले
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
शेर
इन बुतों ने मुझ को बे-ख़ुद किस क़दर धोके दिए
सीधा-सादा जान कर मर्द-ए-मुसलमाँ देख कर