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शेर
हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं
फिर अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल किया मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
शेर
काम आख़िर जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार आ ही गया
दिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
शेर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
सर-ब-कफ़ हिन्द के जाँ-बाज़-ए-वतन लड़ते हैं
तेग़-ए-नौ ले सफ़-ए-दुश्मन में घुसे पड़ते हैं
बर्क़ देहलवी
शेर
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
क्या करिश्मा है मिरे जज़्बा-ए-आज़ादी का
थी जो दीवार कभी अब है वो दर की सूरत