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शेर
शैख़ अपनी रग को क्या करें रेशे को क्या करें
मज़हब के झगड़े छोड़ें तो पेशे को क्या करें
अकबर इलाहाबादी
शेर
क्यूँ इश्क़ के झगड़े को ले जाता है उक़्बा में
कर ख़ात्मा दुनिया में दुनिया की मुसीबत का
क़द्र ओरैज़ी
शेर
तुम चाहो तो दो लफ़्ज़ों में तय होते हैं झगड़े
कुछ शिकवे हैं बेजा मिरे कुछ उज़्र तुम्हारे
असर रामपुरी
शेर
आग से रिश्ता है मेरा और दरिया भी है अपना
आए दिन दोनों के झगड़े में उलझ कर रह गया हूँ
राघवेंद्र द्विवेदी
शेर
जलील मानिकपूरी
शेर
ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है
कि दाढी शहर में किस की बड़ी और किस की छोटी है