aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ji.e.n"
चुप रहो क्यूँ मिज़ाज पूछते होहम जिएँ या मरें तुम्हें क्या है
तो ज़िंदगी को जिएँ क्यूँ न ज़िंदगी की तरहकहीं पे फूल कहीं पर शरर बनाते हुए
टुक देख लें चमन को चलो लाला-ज़ार तकक्या जाने फिर जिएँ न जिएँ हम बहार तक
मर-मर के जिएँ किस लिए बंदे तिरे मौलाजीना भी ज़रा मौत सा आसान बना दे
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहेजब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैंनाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँक्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीबइतना न याद आ कि तुझे भूल जाएँ हम
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हमआँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश हैजब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हमये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिलहम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया
जिन से इंसाँ को पहुँचती है हमेशा तकलीफ़उन का दावा है कि वो अस्ल ख़ुदा वाले हैं
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने परजो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार मेंऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैंकि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ मेंमिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझेवो आ भी जाएँ तो आए न ए'तिबार मुझे
मैं जिन दिनों तिरे बारे में सोचता हूँ बहुतउन्हीं दिनों तो ये दुनिया समझ में आती है
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