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शेर
शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
ज़रा पूछो तो साक़ी से कि पैमानों पे क्या गुज़री
वहशी कानपुरी
शेर
जो शैख़-ए-शहर आया हम से औबाशों की मज्लिस में
अगर धूलें नहीं तो गालियाँ दो-चार खा निकला