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शेर
दूर रहता है मगर जुम्बिश-ए-लब बोस-ओ-कनार
डूबता रहता है दरिया में किनारा क्या क्या
अबुल हसनात हक़्क़ी
शेर
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
और कुछ ख़ून-ए-जिगर हम भी मिला देते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता
ज़बाँ उस बद-ज़बाँ की मुँह में और मैं ज़बाँ होता
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ ओ लब की बख़िया-गरी
फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
शेर
नज़रों में एक बोसा माँगा था हम ने उस से
उस ने भी ज़ेर-ए-लब ही कुछ कुछ कहा समझ कर