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शेर
शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे
घिसते घिसते घिस गए आख़िर कंकर जो नोकीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
शेर
मिट्टी की ता'ज़ीम करो तो और तकब्बुर करती है
कंकर पत्थर जैसे आदम-ज़ाद ख़ुदा हो जाते हैं
मुमताज़ इक़बाल
शेर
ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई