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शेर
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
काटे हैं हम ने यूँही अय्याम ज़िंदगी के
सीधे से सीधे-सादे और कज से कज रहे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
इक हाल हो तो यारो उस का बयाँ करें हम
क्या क्या न आशिक़ी में हालात काटते हैं
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
चश्म ओ रुख़्सार के अज़़कार को जारी रक्खो
प्यार के नामे को दोहराओ कि कुछ रात कटे