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शेर
हरगिज़ रहा न काफ़िर ओ मोमिन से उस को काम
दिल ने किया क़ुबूल जब इस्लाम हुस्न का
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
'उम्र सारी तो कटी 'इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
हम न कहते थे कि हज़रत पारसा कहने को हैं
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
हुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं
और तो सब कुछ था लेकिन रस्म-ए-दिलदारी न थी
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
घर है अल्लाह का ये इस की तो तामीर न तोड़
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ ऐ शैख़ पे ज़िन्हार नहीं
तेरी तस्बीह को निस्बत मिरी ज़ुन्नार के साथ