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शेर
गुलचीं बहार-ए-गुल में न कर मन-ए-सैर-ए-बाग़
क्या हम ग़ुबार दामन-ए-बाद-ए-सबा के हैं
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
शेर
दर्द-ए-सर में है किसे संदल लगाने का दिमाग़
उस का घिसना और लगाना दर्द-ए-सर ये भी तो है
मारूफ़ देहलवी
शेर
असलम महमूद
शेर
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
फ़ुर्क़त में कार-ए-वस्ल लिया वाह वाह से
हर आह-ए-दिल के साथ इक अरमाँ निकल गया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
शेर
क्या अदा से आवे है दीवाना कर के सैर-ए-बाग़
फूल कानों में तो हैं ख़ार-ए-मुग़ीलाँ हाथ में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
दूँगा जवाब मैं भी बड़ी शद्द-ओ-मद के साथ
लिक्खा है उस ने मुझ को बड़े कर्र-ओ-फ़र्र से ख़त
नूह नारवी
शेर
दर्द-ए-सर है तेरी सब पंद-ओ-नसीहत नासेह
छोड़ दे मुझ को ख़ुदा पर न कर अब सर ख़ाली