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शेर
रहने दे ज़िक्र-ए-ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को नदीम
उस के तो ध्यान से भी होता है दिल को उलझाओ
दत्तात्रिया कैफ़ी
शेर
दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
फिर आई ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल की लहर पेश-ए-नज़र
फिर इक जुनूँ के नए सिलसिले हुए दिल में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
उस ने सारी उम्र में ज़ुन्नार कूँ देखा न था
सिराज औरंगाबादी
शेर
हिज्र की रातों में लाज़िम है बयान-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
नींद तो जाती रही है क़िस्सा-ख़्वानी कीजिए
सिराज औरंगाबादी
शेर
रोता हूँ मैं तसव्वुर-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियाह में
पानी बरस रहा है जमे हैं घटा के रंग
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
सर्व को देख के कहता है दिल-ए-बस्ता-ए-ज़ुल्फ़
हम गिरफ़्तार हैं इस बाग़ में आज़ाद हैं सब
अमानत लखनवी
शेर
या गुफ़्तुगू हो उन लब-ओ-रुख़्सार-ओ-ज़ुल्फ़ की
या उन ख़मोश नज़रों के लुत्फ़-ए-सुख़न की बात
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
क्यूँ न मरक़द पर करे दूद-ए-चराग़-ए-शाम रक़्स