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शेर
शबाब ढलते ही आई पीरी मआ'ल पर अब नज़र हुई है
बड़ी ही ग़फ़लत में शब गुज़ारी कहाँ पहुँच कर सहर हुई है
दिल शाहजहाँपुरी
शेर
ये दुनिया है यहाँ असली कहानी पुश्त पर रखना
लबों पर प्यास रखना और पानी पुश्त पर रखना
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
शेर
चश्म-ए-तर पर गर नहीं करता हवा पर रहम कर
दे ले साक़ी हम को मय ये अब्र-ए-बाराँ फिर कहाँ
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
शेर
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले