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शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
अमीर ख़ुसरो
शेर
हक़ ने तुझ को इक ज़बाँ दी और दिए हैं कान दो
इस के ये मअ'नी कहे इक और सुने इंसान दो
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
शेर
मोहब्बत को छुपाए लाख कोई छुप नहीं सकती
ये वो अफ़्साना है जो बे-कहे मशहूर होता है
लाला माधव राम जौहर
शेर
ख़ुद ग़लत है जो कहे होती है तक़दीर ग़लत
कहीं क़िस्मत की भी हो सकती है तहरीर ग़लत
इमाम बख़्श नासिख़
शेर
उस से यही कहता हूँ वाजिब एहतिराम-ए-इश्क़ है
अंदर से ये ख़्वाहिश है वो जैसा कहे वैसा करूँ