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शेर
उस की उजली पेशानी से इतनी वहशत होती है
उस से मिल कर पहरों ख़ुद को तारीकी में रखती हूँ
ज़ेबा ख़ान हिना
शेर
जो कान लगा कर सुनते हैं क्या जानें रुमूज़ मोहब्बत के
अब होंट नहीं हिलने पाते और पहरों बातें होती हैं