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शेर
कलेजा काँपता है देख कर इस सर्द-मेहरी को
तुम्हारे घर में क्या आए कि हम कश्मीर में आए
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
क्या ख़ूब ‘बर्क़’ तू ने दिखाया है ज़ोर-ए-तब्अ
काग़ज़ पे रख दिया है कलेजा निकाल के
मुंशी राम रखा बर्क़
शेर
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
हुआ क्या जान को मेरी अभी तो थी भली-चंगी