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शेर
अब इस को ज़िंदगी कहिए कि अहद-ए-बे-हिसी कहिए
घरों में लोग रोते हैं मगर रस्तों पे हँसते हैं
कलीम हैदर शरर
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
अबस दिल बे-कसी पे अपनी अपनी हर वक़्त रोता है
न कर ग़म ऐ दिवाने इश्क़ में ऐसा ही होता है