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शेर
गर्दिश-ए-बख़्त से बढ़ती ही चली जाती हैं
मिरी दिल-बस्तगियाँ ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के साथ
बेखुद बदायुनी
शेर
मुझ को अपने साथ ही तेरे सुलाने की हवस
इस तरह है बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता के जगाने की हवस