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शेर
बाहर का धन आता जाता असल ख़ज़ाना घर में है
हर धूप में जो मुझे साया दे वो सच्चा साया घर में है
उबैदुल्लाह अलीम
शेर
ज़रा रहने दो अपने दर पे हम ख़ाना-ब-दोशों को
मुसाफ़िर जिस जगह आराम पाते हैं ठहरते हैं
लाला माधव राम जौहर
शेर
समुंदर ले गया हम से वो सारी सीपियाँ वापस
जिन्हें हम जमअ कर के इक ख़ज़ाना करने वाले थे
ज़फ़र गोरखपुरी
शेर
क़ुदरत की बरकतें हैं ख़ज़ाना बसंत का
क्या ख़ूब क्या अजीब ज़माना बसंत का