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शेर
सदाक़त हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं वाइ'ज़
हक़ीक़त ख़ुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
शेर
तिरी तस्वीर तो वा'दे के दिन खिंचने के क़ाबिल है
कि शर्माई हुई आँखें हैं घबराया हुआ दिल है
नज़ीर इलाहाबादी
शेर
'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया
मीर तक़ी मीर
शेर
चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
लैला ओ मजनूँ की लाखों गरचे तस्वीरें खिंचीं
मिल गई सब ख़ाक में जिस वक़्त ज़ंजीरें खिंचीं